साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है
लेकिन तूफां से लड़ने का मजा और ही कुछ है
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बाग़बाँ शायरी – बाग़बाँ तू ही बता, किसने
बाग़बाँ तू ही बता, किसने इसे फूँक दिया
आशियाँ मैंने बनाया था, बड़ी मेहनत से I
दास्ताँ शायरी – हाए कैसी वो शाम होती
हाए कैसी वो शाम होती है
दास्ताँ जब तमाम होती है…
मंसूब शायरी – राह-ए-हयात मुझ से ही मंसूब
राह-ए-हयात मुझ से ही मंसूब हो गई
मैं इस तरह मिटा हूँ के मशहूर हो गया
रुख़्सार शायरी – मैं बाग़ में हूँ तालिब-ए-दीदार
मैं बाग़ में हूँ तालिब-ए-दीदार किसी का
गुल पर है नज़र ध्यान में रुख़्सार किसी का
नाज़ शायरी – क़दम उठे भी नहीं बज़्म-ए-नाज़
क़दम उठे भी नहीं बज़्म-ए-नाज़ की जानिब
ख़याल अभी से परेशाँ है देखिए क्या हो
मुफ़्लिस शायरी – सब खामोश हैं यहाँ कोई
सब खामोश हैं यहाँ कोई आवाज नहीं करता
सच कहकर किसीको कोई नाराज नहीं करता
इस कदर बिका है इंसान दौलत के हाथों कि
किसी मुफ़्लिस का चारागर इलाज नहीं करता
हक़ीक़त शायरी – पर्दे में छुपे चेहरे को
पर्दे में छुपे चेहरे को पहचान गए हैं
अब उनकी हक़ीक़त को भी हम जान गए हैं
माशूक़ शायरी – शर्म समझे तेरे तग़ाफ़ुल को वाह
शर्म समझे तेरे तग़ाफ़ुल को
वाह क्या होशियार हम भी हैं
तुम अगर अपनी ख़ू के हो माशूक़
अपने मतलब के यार हम भी हैं
हुस्न शायरी – ए हुस्न ज़रा सुन, तू
ए हुस्न ज़रा सुन, तू यूँ ना इतरा के चल..
मेरे महबूब की गली में, सर झुका के चल..