इक तो बंदिश भी कमाल, फिर अर्ज़ लाज़वाब
मुख़ातिब हमसे न हों, इश़्क भी हो बेहिसाब
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मुख़ातिब शायरी – अल्लाह-रे चश्म-ए-यार की मोजिज़-बयानियाँ हर इक
अल्लाह-रे चश्म-ए-यार की मोजिज़-बयानियाँ
हर इक को है गुमाँ कि मुख़ातब हमीं रहे
मुख़ातिब शायरी – अज़ब जादू है उसकी बातों
अज़ब जादू है उसकी बातों में
वो मुख़ातिब हो तो पत्थर बोलता है
मुख़ातिब शायरी – ये सोच कर ही खुद
ये सोच कर ही खुद से मुख़ातिब रहे सदा
क्या गुफ़्तुगू करेंगे तमाशाइयों से हम
मुख़ातिब शायरी – ख़तों में ख़ैरियत लिखना रस्मे
ख़तों में ख़ैरियत लिखना रस्मे ज़माना रहा,
मुख़ातिब हो तू तो आँखों से दिले इबारत लिखूं
मुख़ातिब शायरी – बड़ा “ग़ुरूर” है उस “चाँद”
बड़ा “ग़ुरूर” है उस “चाँद” को अपने “वज़ूद” पर..
“धज्जियाँ” उड़ जायेंगी “मुख़ातिब” जब तुमसे होगा
मुख़ातिब शायरी – अब क्या कहें आलम उनकी
अब क्या कहें आलम उनकी बेरुखी का,
मुख़ातिब तो हैं मगर ग़ैरों की तरह.