वस्ल शायरी – न कुर्बतों में सुकून है न फासलों

न कुर्बतों में
सुकून है
न फासलों में करार है
ना वस्ल में मज़ा है
न हिज़्र में
वो सज़ा है
मैं कहूँ जान की आफत
तुम कहते हो कि प्यार है