सुरूर तेरी रिफ़ाक़त का कम नहीं होता,
तसव्वुरात में रंग-ए-विसाल रौशन है
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रिफ़ाक़त शायरी – ये इंतिज़ार नहीं शम्अ है
ये इंतिज़ार नहीं शम्अ है रिफ़ाक़त की
इस इंतिज़ार से तन्हाई ख़ूब-सूरत है
रिफ़ाक़त शायरी – बाद मरने के भी छोड़ी
बाद मरने के भी छोड़ी न रिफ़ाक़त मेरी
मेरी तुर्बत से लगी बैठी है हसरत मेरी
रिफ़ाक़त शायरी – चार दिन की ये रिफ़ाक़त
चार दिन की ये रिफ़ाक़त जो रिफ़ाक़त भी नहीं
उम्र भर के लिए आज़ार हुई जाती है
रिफ़ाक़त शायरी – ज़िंदगी जिन की रिफ़ाक़त पे
ज़िंदगी जिन की रिफ़ाक़त पे बहुत नाज़ाँ थी
उन से बिछड़ी तो कोई आँख में आँसू भी नहीं
रिफ़ाक़त शायरी – जब उस ने मुझ से
जब उस ने मुझ से ये कहा था इश्क़ रिफ़ाक़त ही तो नहीं
तब मैं ने हर शख़्स की सूरत मुश्किल से पहचानी थी
रिफ़ाक़त शायरी – रिफ़ाक़त ना सही, कुछ मरासिम
रिफ़ाक़त ना सही, कुछ मरासिम तो रख
मेरे हमदम, तू मुझसे अदावत का ही रिश्ता तो रख कर जा
रिफ़ाक़त शायरी – किसी को छोड़ कर जाना
किसी को छोड़ कर जाना हो,तो फिर छोड़ जाता है
बिछड़ना हो तो सदियों की रिफ़ाक़त कुछ नहीं होती
रिफ़ाक़त शायरी – बे-हिसी शर्त ही ठहरी थी
बे-हिसी शर्त ही ठहरी थी रिफ़ाक़त में अगर
किस लिए करते रहे जाँ का ज़ियाँ तुम और मैं
रिफ़ाक़त शायरी – कहो तो नाम मैं दे
कहो तो नाम मैं दे दूँ इसे मुहब्बत का
जो इक अलाव है जलती हुई रिफ़ाक़त का