ऐ ख़ुशनुमा लम्हे तेरे आमद की ख़ैर हो,
इस दर्द-ए-मुसलसल से उकता गए थे हम
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मुसलसल शायरी – दर्द है…या तेरी तलब.. जो
दर्द है…या तेरी तलब..
जो भी है, मुसलसल है..
मुसलसल शायरी – गिरा रहे हैं मुसलसल वो
गिरा रहे हैं मुसलसल वो बिजलियाँ ‘दानिश’
बताओ कैसे बचाओगे आशियाने को
मुसलसल शायरी – बस इक ख़ता की मुसलसल
बस इक ख़ता की मुसलसल सज़ा अभी तक है..
मेरे ख़िलाफ़ मेरा आईना अभी तक है…
मुसलसल शायरी – मुसलसल हादसों से बस मुझे
मुसलसल हादसों से बस मुझे इतनी शिकायत है
कि ये आँसू बहाने की भी मोहलत नही देते
मुसलसल शायरी – मुसलसल बेकली दिल को रही
मुसलसल बेकली दिल को रही है
मगर जीने की सूरत तो रही है
मुसलसल शायरी – इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
आज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की
मुसलसल शायरी – ज़िन्दगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह कटी
ज़िन्दगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह कटी है,
जाने किस ज़ुल्म की पाई है सज़ा याद नहीं.
मुसलसल शायरी – तुम हिज़्र की रातो में
तुम हिज़्र की रातो में तड़पते हो मुसलसल
ये सोच के तन्हाई में मर जाते है हम भी
मुसलसल शायरी – एक मुसलसल चोट सी लगती
एक मुसलसल चोट सी लगती रहती है
सामना ख़ुद अपना है हर हर बार मुझे