बहुत खुश हुए की अकेले है हम,
आज जब मोहब्बत करने वालों के मंजर देखे
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मंज़र शायरी – जैसा दर्द हो वैसा मंज़र
जैसा दर्द हो वैसा मंज़र होता है
मौसम तो इंसान के अंदर होता है
मंज़र शायरी – न जिस्म कोई..न दिल, न
न जिस्म कोई..न दिल, न आँखें मगर ये जादूगरी तो देखो
हर एक शै में धड़क रहा है, हर एक मंज़र से झाँकता है
मंजर शायरी – बरस रहे बादल आँखे रो
बरस रहे बादल आँखे रो रही
तन्हाई हर बात कह रही
जाये तो कहा जाये
हर ओर गम की हवा चल रही
बड़ा अजीब मंजर है इश्क का
मर चुका मानस मगर साँस चल रही
मंज़र शायरी – पानी में अक़्श देख कर
पानी में अक़्श देख कर खुश हो रहा था मैं,
पत्थर किसी ने मार कर मंज़र बदल दिया
मंज़र शायरी – पुराने शहरों के मंज़र निकलने
पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं
ज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं
मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में
मगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं
मंजर शायरी – मंजर ही हादसे का बड़ा
मंजर ही हादसे का बड़ा अजीबो गरीब था…
वो आग से जला जो नदी के करीब था…
मंज़र शायरी – वही लम्हे वही मंज़र वही
वही लम्हे वही मंज़र वही यादों के हुजूम
मेरे कमरे में उजाला है मगर कम क्यूँ
मंजर शायरी – एक अजीब सा मंजर नज़र
एक अजीब सा मंजर नज़र आता है
हर एक आँसूं समंदर नज़र आता है
कहाँ रखूं मै शीशे सा दिल अपना
हर किसी के हाथ मैं पत्थर नजर आता है
मंज़र शायरी – जिंदगी भर की रौनकों का
जिंदगी भर की रौनकों का सूना मंज़र है
काफिला जाता रहा पीछे बस गुब्बार मिला..