क़दम उठे भी नहीं बज़्म-ए-नाज़ की जानिब
ख़याल अभी से परेशाँ है देखिए क्या हो
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नाज़ शायरी – वो और होंगे किनारे से
वो और होंगे किनारे से देखने वाले
मेरी न पूछ कि तूफां नाज़ उठाए हैं
नाज़ शायरी – वो शहर में था तो
वो शहर में था तो उस के लिए औरों से भी मिलना पड़ता था
अब ऐसे-वैसे लोगों के मैं नाज़ उठाऊँ किस के लिए
नाज़ शायरी – बहुत नाज़ था मुझे अपने
बहुत नाज़ था मुझे अपने चाहने वालों पे
मैं अज़ीज़ था सबको मगर ज़ुरुरतों के लिए…
नाज़ शायरी – बड़े प्यार से तराशा था
बड़े प्यार से तराशा था उस संगेमरमर को
बड़ा नाज़ था उसे अपने आप पर.
एक दरार क्या पड़ी
किसीने मुड़ कर देखना तक गंवारा न समझा.
नाज़ शायरी – जो इश्क़ अधूरा रह जाए
जो इश्क़ अधूरा रह जाए तो खुद पे नाज़ करना,
कहते हैं सच्ची मोहब्बत कभी मुकम्मल नहीं होती
नाज़ शायरी – नाज़ है गुल को, नज़ाकत
नाज़ है गुल को, नज़ाकत पे चमन में ऐ ‘जौक’,
उसने देखे ही नहीं नाज़ो-नज़ाकत वाले…
नाज़ शायरी – ग़म-ए-हयात से दिल को अभी
ग़म-ए-हयात से दिल को अभी निजात नहीं,
निगाह-ए-नाज़ से कह दो कि इंतज़ार करे…
नाज़ शायरी – बडी बारीकी से तोडा है
बडी बारीकी से तोडा है उसने दिल का हर कोना,
मुझे तो सच कहुँ उस के हुनर पे नाज़ होता हैं