प्रसिद्ध शायरों द्वारा लिखी हुई चुनिंदा शेरो शायरी :- धोखा शायरी, (धोका शायरी), फ़रेब शायरी, चाल शायरी, बेवफाई शायरी, बदलना शायरी और दग़ा शायरी. |
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तिरे वा’दों पे कहाँ तक मिरा दिल फ़रेब खाए कोई ऐसा कर बहाना मिरी आस टूट जाए फ़ना निज़ामी कानपुरी |
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं हम भी सादा हैं इसी चाल में आ जाते हैं अफ़ज़ल ख़ान |
वो ज़हर देता तो सब की निगह में आ जाता सो ये किया कि मुझे वक़्त पे दवाएँ न दीं अख़्तर नज़्मी |
फ़ासला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो निदा फ़ाज़ली |
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए माहिर-उल क़ादरी |
अक्सर ऐसा भी मोहब्बत में हुआ करता है कि समझ-बूझ के खा जाता है धोका कोई मज़हर इमाम |
अहबाब को दे रहा हूँ धोका चेहरे पे ख़ुशी सजा रहा हूँ क़तील शिफ़ाई |
आदमी जान के खाता है मोहब्बत में फ़रेब ख़ुद-फ़रेबी ही मोहब्बत का सिला हो जैसे इक़बाल अज़ीम |
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है बेवफ़ाई कभी कभी करना बशीर बद्र |
इक बरस भी अभी नहीं गुज़रा कितनी जल्दी बदल गए चेहरे कैफ़ अहमद सिद्दीकी |
इक सफ़र में कोई दो बार नहीं लुट सकता अब दोबारा तिरी चाहत नहीं की जा सकती जमाल एहसानी |
ऐ मुझ को फ़रेब देने वाले मैं तुझ पे यक़ीन कर चुका हूँ अतहर नफ़ीस |
ऐसे मिला है हम से शनासा कभी न था वो यूँ बदल ही जाएगा सोचा कभी न था ख़ुमार फ़ारूक़ी |
किस ने वफ़ा के नाम पे धोका दिया मुझे किस से कहूँ कि मेरा गुनहगार कौन है नजीब अहमद |
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी फ़िराक़ गोरखपुरी |
ख़ालिद’ मैं बात बात पे कहता था जिस को जान वो शख़्स आख़िरश मुझे बे-जान कर गया ख़ालिद शरीफ़ |
गिन रहा हूँ हर्फ़ उन के अहद के मुझ को धोका दे रही है याद क्या अज़ीज़ हैदराबादी |
चमन के रंग-ओ-बू ने इस क़दर धोका दिया मुझ को कि मैं ने शौक़-ए-गुल-बोसी में काँटों पर ज़बाँ रख दी अख़्तर होशियारपुरी |
ज़ख़्म लगा कर उस का भी कुछ हाथ खुला मैं भी धोका खा कर कुछ चालाक हुआ ज़ेब ग़ौरी |
जो उन मासूम आँखों ने दिए थे वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ फ़िराक़ गोरखपुरी |
जो बात दिल में थी उस से नहीं कही हम ने वफ़ा के नाम से वो भी फ़रेब खा जाता अज़ीज़ हामिद मदनी |
दिखाई देता है जो कुछ कहीं वो ख़्वाब न हो जो सुन रही हूँ वो धोका न हो समाअत का फ़ातिमा हसन |
धोका था निगाहों का मगर ख़ूब था धोका मुझ को तिरी नज़रों में मोहब्बत नज़र आई शौकत थानवी |
बाग़बाँ ने आग दी जब आशियाने को मिरे जिन पे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे साक़िब लखनवी |
मुझे अब आप ने छोड़ा कि मैं ने इधर तो देखिए किस ने दग़ा की लाला माधव राम जौहर |
मुद्दत हुई इक शख़्स ने दिल तोड़ दिया था इस वास्ते अपनों से मोहब्बत नहीं करते साक़ी फ़ारुक़ी |
मेरे ब’अद वफ़ा का धोका और किसी से मत करना गाली देगी दुनिया तुझ को सर मेरा झुक जाएगा क़तील शिफ़ाई |
यार मैं इतना भूका हूँ धोका भी खा लेता हूँ अक्स समस्तीपुरी |
वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहे हैं मैं क्या कर रहा हूँ वो क्या कर रहे हैं बहज़ाद लखनवी |
समझा लिया फ़रेब से मुझ को तो आप ने दिल से तो पूछ लीजिए क्यूँ बे-क़रार है लाला माधव राम जौहर |
हम उसे याद बहुत आएँगे जब उसे भी कोई ठुकराएगा क़तील शिफ़ाई |
हर-चंद ए’तिबार में धोके भी हैं मगर ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए जाँ निसार अख़्तर |
हाथ छुड़ा कर जाने वाले मैं तुझ को अपना समझा था ख़ालिद मोईन |