ये इनायत भी नही कम मेरे हरजाई की
जख्म देता है मगर दाम नही लेता है…
जो कि रूसवाई से डरता तो है बहोत वो
वह मेरा नाम सरेआम नहीं लेता है…
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हरजाई शायरी – जरा सी बात पे रुठा
जरा सी बात पे रुठा किए वो हरजाई
अदा-ए-खास बड़ी देर से समझ आई
हरजाई शायरी – हुस्न के जाने कितने चेहरे
हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम
इश्क़ का पैशा हुस्न परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है
हरजाई शायरी – कभी हम से कभी ग़ैरों
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है
हरजाई शायरी – मैं उसके रूप का शहदाई वो
मैं उसके रूप का शहदाई
वो धूप – छाँव सा हरजाई
वो शोख का रंग बदलता है
मैं रंग रूप का सौदाई
हरजाई शायरी – क्यूँ तर्क-ए-तअ’ल्लुक़ भी किया लौट
क्यूँ तर्क-ए-तअ’ल्लुक़ भी किया लौट भी आया?
अच्छा था कि होता जो वो हरजाई ज़रा और
हरजाई शायरी – कभी अपनी सी कभी ग़ैर
कभी अपनी सी कभी ग़ैर नज़र आई है
कभी इख़्लास की मूरत कभी हरजाई है
हरजाई शायरी – ऐसी आदत हो गयी है
ऐसी आदत हो गयी है अब तो उस हरजाई की..
रुलाते तो हैं मगर मनाना भूल जाते हैं…
हरजाई शायरी – वादा करके वो निभाना भूल
वादा करके वो निभाना भूल जाते है
लगा कर आग फिर वो बुझाना भूल जाते हैं
ऐसी आदत हो गयी है अब तो उस हरजाई की
रुलाते तो है मगर मनाना भूल जाते है
हरजाई शायरी – तू है हरजाई तो अपना
तू है हरजाई तो अपना भी यही तौर सही
तू नहीं और सही और नहीं और सही