सुख़न शायरी – कुछ न कहने से भी

कुछ न कहने से भी छिन जाता है एजाज़-ए-सुख़न
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है

सुख़न शायरी – मंजिले-शेरो-सुख़न, सबके मुकद्दर में कहाँ यूँ

मंजिले-शेरो-सुख़न, सबके मुकद्दर में कहाँ
यूँ तो हमने भी बहुत काफ़िया-पैमाई की…