कुछ न कहने से भी छिन जाता है एजाज़-ए-सुख़न
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है
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सुख़न शायरी – यूँ भी तो उस ने
यूँ भी तो उस ने हौसला-अफ़ज़ाई की मेंरी
हर्फ़-ए-सुख़न के साथ ही ज़ख़्म-ए-हुनर दिया
सुख़न शायरी – रानाई-ए-ख़याल को ठहरा दिया गुनाह वाइज़
रानाई-ए-ख़याल को ठहरा दिया गुनाह
वाइज़ भी किस क़दर है मज़ाक़-ए-सुख़न से दूर
सुख़न शायरी – मंजिले-शेरो-सुख़न, सबके मुकद्दर में कहाँ यूँ
मंजिले-शेरो-सुख़न, सबके मुकद्दर में कहाँ
यूँ तो हमने भी बहुत काफ़िया-पैमाई की…
सुख़न शायरी – क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई
क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तुगू करे
जो मुस्तक़िल सुकूत से दिल को लहू करे