अजब पहेलियाँ हैं हाथों की लकीरों की…
सफ़र ही सफ़र लिखा है बिना हमसफ़र के…
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सफ़र शायरी – सफ़र में होती है पहचान
सफ़र में होती है पहचान कौन कैसा है
ये आरज़ू थी मेरे साथ तू सफ़र करता
सफ़र शायरी – तुम मेरे साथ थे जब
तुम मेरे साथ थे जब तक तो सफ़र रौशन था
शम्अ जिस मोड़ पे छूटी है वहीं रात हुई
सफ़र शायरी – जो मेरे बस में है
जो मेरे बस में है उस से ज़ियादा क्या करना
सफ़र तो करना है उस का इरादा क्या करना