सदाक़त शायरी – सदाक़त हो तो दिल सीनों

सदाक़त हो तो दिल सीनों से खिंचने लगते हैं वाइज़
हक़ीक़त ख़ुद को मनवा लेती है मानी नहीं जाती

सदाक़त शायरी – क़लम शाख़-ए-सदाक़त है ज़बाँ बर्ग-ए-अमानत

क़लम शाख़-ए-सदाक़त है ज़बाँ बर्ग-ए-अमानत है
जो दिल में है वो कहता हूँ अदाकारी नहीं करता