शुमार शायरी – कभी मै भी अपनों में

कभी मै भी अपनों में शुमार था
कभी तू भी मुझपे जा निसार था
ये किस्मत नही तो और क्या है
ये सब खाब था और खुमार था

शुमार शायरी – ज़रा सी बात पे क्या

ज़रा सी बात पे क्या क्या न खो दिया मैं ने
जो तुम ने खोया है उस का शुमार तुम भी करो

शुमार शायरी – गैरो की महफ़िल में हँसना,

गैरो की महफ़िल में हँसना, अपनों से रूठे रहना,
यहाँ आये हर शख्स की.. अब आदत में शुमार है