कभी मै भी अपनों में शुमार था
कभी तू भी मुझपे जा निसार था
ये किस्मत नही तो और क्या है
ये सब खाब था और खुमार था
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शुमार शायरी – मिरे रोज़ ओ शब भी
मिरे रोज़ ओ शब भी अजीब थे न शुमार था न हिसाब था
कभी उम्र भर की ख़बर न थी कभी एक पल को सदी कहा
शुमार शायरी – मुझे भी शुमार करो अब
मुझे भी शुमार करो अब गुनहगारों की फेहरिस्त में..
मैं भी कातिल हुँ हसरतों का मैंने भी ख्वाहिशों को मारा है…
शुमार शायरी – ज़रा सी बात पे क्या
ज़रा सी बात पे क्या क्या न खो दिया मैं ने
जो तुम ने खोया है उस का शुमार तुम भी करो
शुमार शायरी – आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार
आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
मुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग
शुमार शायरी – ग़ैर-मुमकिन है तिरे घर के
ग़ैर-मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार
मेरे रिसते हुए ज़ख़्मों के हिसाबों की तरह
शुमार शायरी – मेरे जज़्बातों से है खेलना,
मेरे जज़्बातों से है खेलना, ज़माने की आदतों मे शुमार,
ग़र खिलौना बनके हम बिकते, तो किसी एक के तो होते.
शुमार शायरी – गैरो की महफ़िल में हँसना,
गैरो की महफ़िल में हँसना, अपनों से रूठे रहना,
यहाँ आये हर शख्स की.. अब आदत में शुमार है