कभी कभी तो ये वहशत भी हम पे गुज़री है
कि दिल के साथ ही देखा है डूबना शब का
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वहशत शायरी – रेत पर थक के गिरा
रेत पर थक के गिरा हूँ तो हवा पूछती है
आप इस दश्त में क्यूँ आए थे वहशत के बग़ैर
वहशत शायरी – मैं कुछ दिन से अचानक
मैं कुछ दिन से अचानक फिर अकेला पड़ गया हूँ
नए मौसम में इक वहशत पुरानी काटती है