वस्ल शायरी – वो मज़ा कहाँ वस्ल-ए-यार में लुत्फ़

वो मज़ा कहाँ वस्ल-ए-यार में
लुत्फ़ जो मिला इंतज़ार में

वस्ल शायरी – अब हम भी अख्तरशुमारी करते

अब हम भी अख्तरशुमारी करते हैं
तेरे बिन ही तेरे वस्ल के ख्वाबों से यारी करते हैं…

वस्ल शायरी – न कुर्बतों में सुकून है न फासलों

न कुर्बतों में
सुकून है
न फासलों में करार है
ना वस्ल में मज़ा है
न हिज़्र में
वो सज़ा है
मैं कहूँ जान की आफत
तुम कहते हो कि प्यार है