रुख़्सार शायरी – मैं बाग़ में हूँ तालिब-ए-दीदार

मैं बाग़ में हूँ तालिब-ए-दीदार किसी का
गुल पर है नज़र ध्यान में रुख़्सार किसी का

रुख़्सार शायरी – अल्लाह बनाता हमे मोती तेरी

अल्लाह बनाता हमे मोती तेरी नथ का
बोसा कभी रुख़्सार का लेता कभी लब का…

रुख़्सार शायरी – अपने “रुख़्सार” को “दुपट्टे” से

अपने “रुख़्सार” को “दुपट्टे” से यूँ ना “छुपाया” कीजिये हुज़ूर..
“दीदार-ऐ-हुस्न” की तलब में “जान” पे बन आती है..