रुख़्सार शायरी – अपने “रुख़्सार” को “दुपट्टे” से

अपने “रुख़्सार” को “दुपट्टे” से यूँ ना “छुपाया” कीजिये हुज़ूर..
“दीदार-ऐ-हुस्न” की तलब में “जान” पे बन आती है..