मुसलसल शायरी – ऐ ख़ुशनुमा लम्हे तेरे आमद

ऐ ख़ुशनुमा लम्हे तेरे आमद की ख़ैर हो,
इस दर्द-ए-मुसलसल से उकता गए थे हम

मुसलसल शायरी – बस इक ख़ता की मुसलसल

बस इक ख़ता की मुसलसल सज़ा अभी तक है..
मेरे ख़िलाफ़ मेरा आईना अभी तक है…

मुसलसल शायरी – ज़िन्दगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह कटी

ज़िन्दगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह कटी है,
जाने किस ज़ुल्म की पाई है सज़ा याद नहीं.