मुनासिब समझो तो सिर्फ़ इतना बता दो..
दिल बेचैन है बहुत, कहीं तुम उदास तो नहीं..
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मुनासिब शायरी – हँसी पहनो, जिंदगी ओढ़ो ख़ुशी के
हँसी पहनो, जिंदगी ओढ़ो
ख़ुशी के लिए हर उम्र मुनासिब है..
मुनासिब शायरी – बन जाऊँ न बेगाना-ए-आदाब-ए-मोहब्बत इतना न
बन जाऊँ न बेगाना-ए-आदाब-ए-मोहब्बत
इतना न क़रीब आओ मुनासिब तो यही है
मुनासिब शायरी – हजूम ए दोस्तों से जब
हजूम ए दोस्तों से जब कभी फुर्सत मिले
अगर समझो मुनासिब तो हमें भी याद कर लेना
मुनासिब शायरी – उसने गिलास उठा के हमसे
उसने गिलास उठा के हमसे नजर मिलाई थी…
हमने नजरों से पीना मुनासिब समझा…
मुनासिब शायरी – थक गया हूँ तेरी नौकरी
थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे…
मुनासिब शायरी – साहब ये चाहते हैं मैं
साहब ये चाहते हैं मैं हर हुक्म पर कहूँ
बेहतर दुरुस्त ख़ूब मुनासिब बजा अभी