मुख़्तसर शायरी – कैसे क़िस्से थे कि छिड़

कैसे क़िस्से थे कि छिड़ जाएँ तो उड़ जाती थी नींद
क्या ख़बर थी वो भी हर्फ़-ए-मुख़्तसर हो जाएँगे

मुख़्तसर शायरी – वो एक लम्हा जिसे तुम

वो एक लम्हा जिसे तुम ने मुख़्तसर जाना
हम ऐसे लम्हे में इक दास्ताँ बनाते हैं