मानिन्द शायरी – ऐसा नहीं कि बर्फ़ की

ऐसा नहीं कि बर्फ़ की मानिन्द हों, मगर
लगता है यूँ कि जैसे पिघलने लगे हैं हम

मानिन्द शायरी – जिन्दगी कुछ रेत की मानिन्द

जिन्दगी कुछ रेत की मानिन्द फिसलती जा रही है हाथ से,
कोशिश ये ही है कि अब भी मुठ्ठी जोर से बन्द कर लें