ऐसा नहीं कि बर्फ़ की मानिन्द हों, मगर
लगता है यूँ कि जैसे पिघलने लगे हैं हम
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मानिन्द शायरी – उससे इक बार तो रूठू
उससे इक बार तो रूठू मैं उसी की मानिन्द
और मेरी तरह से वो मुझको मनाने आये
मानिन्द शायरी – हर चेहरा किसी नक्श के
हर चेहरा किसी नक्श के मानिन्द उभर जाए
ये दिल का वरक़ इतना तो सादा भी नहीं है.
मानिन्द शायरी – जिन्दगी कुछ रेत की मानिन्द
जिन्दगी कुछ रेत की मानिन्द फिसलती जा रही है हाथ से,
कोशिश ये ही है कि अब भी मुठ्ठी जोर से बन्द कर लें
मानिन्द शायरी – बादलों से छूट कर ये बूदें
बादलों से छूट कर
ये बूदें जमीन पर जो गिरती हैं,
कि तेरी यादों के बुलबुलों की मानिन्द
कभी बनती – कभी बिगड़ती हैं…
मानिन्द शायरी – गुलों के बीच में मानिन्द
गुलों के बीच में मानिन्द ख़ार मैं भी था
फ़क़ीर ही था मगर शानदार मैं भी था