ये हुस्न-ए-नुमाइश है फ़क़त चंद घड़ी की
किस वास्ते ए दोस्त तू मग़रूर हुआ है
Tag: मग़रूर पर शायरी
मग़रूर शायरी – मग़रूर जो कहती है तो
मग़रूर जो कहती है तो कहती रहे दुनिया,
हम मुड़ के किसी शख्स को देखा नहीं करते
मग़रूर शायरी – झुकने नहीं मैं टूटने तैयार
झुकने नहीं मैं टूटने तैयार हूँ जनाब
मग़रूर नहीं थोड़ा सा खुद्दार हूँ जनाब
मग़रूर शायरी – है मेरे हाथ में जब
है मेरे हाथ में जब हाथ तेरा
अजब क्या है जो मैं मग़रूर हो जाऊँ
मग़रूर शायरी – कह देते अगर मंजूर न
कह देते अगर मंजूर न था,
यूं प्यार मेरा मग़रूर न था.
मग़रूर शायरी – आज से पहले ये कितने
आज से पहले ये कितने मग़रूर थे,
लुट गयी पारसाई मज़ा आ गया.
मग़रूर शायरी – मेरी खामोशियों का राज़ मुझे
मेरी खामोशियों का राज़ मुझे खुद नहीं मालूम,
ना जाने क्यूँ लोग मुझे मग़रूर समझते हैं…
मग़रूर शायरी – दिलक़श हैं मेरे जज़्बे,और मग़रूर
दिलक़श हैं मेरे जज़्बे,और मग़रूर उनकी अदायें,
कोई इतना बता दे हमें हम मुहब्बत कैसे निभायें…
मग़रूर शायरी – जज्बातों के सागर पे ग़र
जज्बातों के सागर पे ग़र जोर चला होता…
हम टूटे ना होते कभी मग़रूर की यूँ चाह में…
मग़रूर शायरी – न कर बयाँ उन से
न कर बयाँ उन से हाल-ऐ-दिल “वासी”
मग़रूर सा शख्स है कहीं साथ न छोड़ दे