राह में उस की चलें और इम्तिहाँ कोई न हो
कैसे मुमकिन है के आतिश हो धुआँ कोई न हो
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इम्तिहाँ शायरी – वो सादगी से तग़ाफ़ुल को
वो सादगी से तग़ाफ़ुल को नाज़ कहते हैं
मगर सिखाती है शोख़ी कि इम्तिहाँ कहिए
इम्तिहाँ शायरी – इम्तिहाँ कीजिए मिरा जब तक शौक़
इम्तिहाँ कीजिए मिरा जब तक
शौक़ ज़ोर-आज़मा नहीं होता
इम्तिहाँ शायरी – खुदाया इश्क में अच्छी ये
खुदाया इश्क में अच्छी ये शर्ते-इम्तिहाँ रख दी…
लगा कर मुहरे ख़ामोशी मेरे मुँह में ज़ुबाँ रख दी…
इम्तिहाँ शायरी – मय वो क्यूँ बहुत पीते
मय वो क्यूँ बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर में या रब
आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहाँ अपना
इम्तिहाँ शायरी – मुखातिब हैं साकी की मख्मूर
मुखातिब हैं साकी की मख्मूर नजरें,
मेरे ज़र्फ का इम्तिहाँ हो रहा है