पैहम शायरी – यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत

यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम
जिहाद-ए-ज़िंदगानी में हैं ये मर्दों की शमशीरें

पैहम शायरी – जज़्बातों के समन्दर में, खिंजावो

जज़्बातों के समन्दर में, खिंजावो की पैहम
असमंजस में न, रिश्तेदारी निभाई जाती

पैहम शायरी – मुहब्बत ही में मिलते हैं

मुहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम
मुहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है