पैकर शायरी – ज़रा ये धूप ढल जाए

ज़रा ये धूप ढल जाए तो उन का हाल पूछेंगे,
यहाँ कुछ साए अपने आप को पैकर बताते हैं

पैकर शायरी – बे-कैफ़ कट रही थी मुसलसल

बे-कैफ़ कट रही थी मुसलसल ये ज़िंदगी
फिर ख़्वाब में वो ख़्वाब सा पैकर मिला मुझे

पैकर शायरी – गर्म बोसों से तराशा हुआ

गर्म बोसों से तराशा हुआ नाज़ुक पैकर
जिस की इक आँच से हर रूह पिघल जाती है