ज़रा ये धूप ढल जाए तो उन का हाल पूछेंगे,
यहाँ कुछ साए अपने आप को पैकर बताते हैं
Tag: पैकर शब्द पर हिंदी शायरी
पैकर शायरी – अपनी हस्ती पे गुमां इतना
अपनी हस्ती पे गुमां इतना न कीजिये साहब
पैकर -ए- ख़ाक तो फिर ख़ाक में आ जाते हैं
पैकर शायरी – तुझको देखा नहीं महसूस किया
तुझको देखा नहीं महसूस किया है मैंने…
आ किसी दिन मेरे एहसास को पैकर कर दे..
पैकर शायरी – बे-कैफ़ कट रही थी मुसलसल
बे-कैफ़ कट रही थी मुसलसल ये ज़िंदगी
फिर ख़्वाब में वो ख़्वाब सा पैकर मिला मुझे
पैकर शायरी – नक़्श फ़रियादी है किसकी
नक़्श फ़रियादी है किसकी शोख़ी-ए-तहरीर का
काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए-तस्वीर का
पैकर शायरी – चाँदनी रात में छुप-छुप के
चाँदनी रात में छुप-छुप के मिला करती हैं
हसरतें भी तेरे पैकर में ढला करती हैं
पैकर शायरी – एक पैकर में सिमट कर
एक पैकर में सिमट कर रह गयीं
खू़बियाँ, जे़बाईयाँ, रानाईयाँ
पैकर शायरी – गर्म बोसों से तराशा हुआ
गर्म बोसों से तराशा हुआ नाज़ुक पैकर
जिस की इक आँच से हर रूह पिघल जाती है