दरमियाँ शायरी – दरमियाँ फासलों की उठती दीवार

दरमियाँ फासलों की उठती दीवार थी
और मेरे दिल की बनती मज़ार थी

फ़क्त मैं ही नहीं था कल बेचैन बहुत
कल तो शब भी बहुत बेक़रार थी

दरमियाँ शायरी – नाराजगी, शिकायते रोज होती है

नाराजगी, शिकायते रोज होती है दरमियाँ,
हुजुर का फिर भी इंतजार रहता है..

दरमियाँ शायरी – अब ऐसे ही ज़िन्दगी को

अब ऐसे ही ज़िन्दगी को गुज़ारा करेंगे हम
आओ न पास फिर भी पुकारा करेंगे हम

दीवार इक रिवाज़ की हमारे है दरमियाँ
अब दूर से ही तुमको निहारा करेंगे हम

दरमियाँ शायरी – छिड़ी है आज मुझसे आसमाँ

छिड़ी है आज मुझसे आसमाँ से
ज़रा हट जाइएगा दरमियाँ से