दरमियाँ फासलों की उठती दीवार थी
और मेरे दिल की बनती मज़ार थी
फ़क्त मैं ही नहीं था कल बेचैन बहुत
कल तो शब भी बहुत बेक़रार थी
Shayari Collection In Hindi
दरमियाँ फासलों की उठती दीवार थी
और मेरे दिल की बनती मज़ार थी
फ़क्त मैं ही नहीं था कल बेचैन बहुत
कल तो शब भी बहुत बेक़रार थी
कितनी दीवारें उठी हैं एक घर के दरमियाँ
घर कहीं गुम हो गया दीवार-ओ-दर के दरमियाँ
खुदा की बन्दगी शायद अधूरी रह गई…
तभी तेरे मेरे दरमियाँ… ये दूरी रह गई..
नाराजगी, शिकायते रोज होती है दरमियाँ,
हुजुर का फिर भी इंतजार रहता है..
अब ऐसे ही ज़िन्दगी को गुज़ारा करेंगे हम
आओ न पास फिर भी पुकारा करेंगे हम
दीवार इक रिवाज़ की हमारे है दरमियाँ
अब दूर से ही तुमको निहारा करेंगे हम
कुछ न कुछ तो उसके मेरे दरमियाँ बाक़ी रहा,
चोट बेशक भर गई लेकिन निशां बाक़ी रहा
दिल्लगी का हीं सही, साथ कोई वास्ता तो है
कौन कहता है हमारे दरमियाँ कुछ भी नहीं
छिड़ी है आज मुझसे आसमाँ से
ज़रा हट जाइएगा दरमियाँ से