
Munawar Faruqui Shayari | Ek Shayari Likhi Hai Kabhi Miloge
एक शायरी लिखी है
कभी मिलोगे तो सुनाऊंगा
तेरी सीरत साफ शीशे की तरह
मेरे दामन में दाग हजारों है
तू नायाब किसी पत्थर की तरह
मेरा उठना बैठना बाजारों में है
तेरी मोजूदगी का एहतराम कर भी लूं
जब होगा रूबरु तो ये ज़ज़बात कहाँ छुपाऊंगा
एक उमर लेके आना
मैं खाली किताब ले आउंगा
तोड़ कर लाने के वादे नहीं
मैं अपनी कलम से सितारे सजाऊंगा
मेरी सब्र की इंतहा पर शक कैसा
मैंने तेरे आने जाने पे ता उमर लिखी है
ज़मीन पे कोई खास नहीं मेरा
तू एक बार क़ुबूल कर में अपने
गवाहों को आसमा से बुलवाउंगा
एक शायरी लिखी है
कभी मिलोगे तो सुनाऊंगा।
कई रात गुजारी है अंधेरे में
तुम थोड़ा सा नूर ले आओगे
मेरे तकिये पीले हैं आंसुओं से,
क्या तुम मुझे अपनी गोद में सुलाओगे,
सुना है बाग है तुम्हारे आंगन में,
मेरे ला हासिल बचपन को वो झूला दिखाओगे ??
मैने खोया है अपनी हर प्यारी चीज को,
में अपनी क़िस्मत फ़िर भी आजमाऊंगा
एक शायरी लिखी है
कभी मिलोगे तो सुनाऊंगा ।
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