साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है
लेकिन तूफां से लड़ने का मजा और ही कुछ है
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तूफां शायरी – मुज़्तरिब हैं मौजें क्यूँ,उठ रहे
मुज़्तरिब हैं मौजें क्यूँ,उठ रहे तूफां क्यूँ
क्या किसी सफीने को, आरज़ू-ए-साहिल है
तूफां शायरी – तूफां से कम न होगी
तूफां से कम न होगी मेरी रोशनी ज़रा
जलते हैं ये चराग़ मेरे हौसलों से अब
तूफां शायरी – तूफां से लड़ने का सलीक़ा
तूफां से लड़ने का सलीक़ा है ज़रूरी
हम डूबने वालों की हिमायत नहीं करते
तूफां शायरी – मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा
मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता
अगर तूफां नहीं आता किनारा मिल गया होता