जुर्म शायरी – जहाँ खामोश फिजा थी, साया

जहाँ खामोश फिजा थी, साया भी न था
हमसा कोई किस जुर्म में आया भी न था
न जाने क्यों छिनी गई हमसे हंसी
हमने तो किसी का दिल दुखाया भी न था