जहाँ खामोश फिजा थी, साया भी न था
हमसा कोई किस जुर्म में आया भी न था
न जाने क्यों छिनी गई हमसे हंसी
हमने तो किसी का दिल दुखाया भी न था
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जुर्म शायरी – अकेले हम ही शामिल नहीं
अकेले हम ही शामिल नहीं हैं इस जुर्म में जनाब,
नजरें जब भी मिली थी मुस्कराये तुम भी थे
जुर्म शायरी – पेश तो होगा अदालत में
पेश तो होगा अदालत में मुक़दमा बे-शक
जुर्म क़ातिल ही के सर हो ये ज़रूरी तो नहीं