जुदाई शायरी – बेवफ़ा मैं था वक़्त था

बेवफ़ा मैं था वक़्त था या मुक़द्दर था,
बात जो भी थी अंजाम जुदाई निकला

जुदाई शायरी – तेरी हर अदा महोबत सी

तेरी हर अदा महोबत सी लगती है,
एक पल जुदाई भी मुदत सी लगती है,
पहले नही अब सोचने लगे है हम,
की हर लम्हा तेरी ज़रूरत सी लगती है,

जुदाई शायरी – ये मुहब्बत का फलसफा भी

ये मुहब्बत का फलसफा भी गजब का रूमानी है
दर्द है इबादत है जुदाई है फिर भी कितनी दीवानगी है