बेचैनियाँ शायरी – कुछ दरमियाँ नहीं गर तेरे-मेरे,

कुछ दरमियाँ नहीं गर तेरे-मेरे, बेचैनियाँ क्यों हैं…
लौट आओ, कुछ रिश्ते बेरुखी से भी नहीं टूटा करते

बेचैनियाँ शायरी – बेचैन हूँ बहुत मगर पैग़ाम

बेचैन हूँ बहुत मगर पैग़ाम किसको दूँ,
जो खुद न समझ पाया वो इल्ज़ाम किसको दूँ