ख़ुलूस शायरी – दुनिया का ग़म शरीक़ है

दुनिया का ग़म शरीक़ है मेरे ख़ुलूस में
अब मैं तेरे सुलूक के क़ाबिल नहीं रहा

ख़ुलूस शायरी – खुला है दर प तिरा

खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा
ख़ुलूस तो है मगर ए’तिबार जाता रहा.

ख़ुलूस शायरी – वो शक्स जाते-जाते बड़ा काम

वो शक्स जाते-जाते बड़ा काम कर गया
रुसवाइयों का शहर मेरे नाम कर गया.

आदत थी मेरी सबसे मोहब्बत से बोलना
मेरा ख़ुलूस ही मुझे बदनाम कर गया.