क़फ़स में हम-सफ़ीरो कुछ तो मुझसे बात कर जाओ,
भला मैं भी कभी तो रहनेवाला था गुलिस्ताँ का
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क़फ़स शायरी – थी असीरान-ए-क़फ़स को आरज़ू परवाज़
थी असीरान-ए-क़फ़स को आरज़ू परवाज़ की
खुल गई खिड़की क़फ़स की क्या कि क़िस्मत खुल गई
क़फ़स शायरी – क़फ़स से छूटकर जाएँ कहाँ
क़फ़स से छूटकर जाएँ कहाँ हम
हमारा आशियाँ कोई नहीं है
क़फ़स शायरी – कैद है, तेरी क़फ़स में ज़िन्दगी
कैद है, तेरी क़फ़स में
ज़िन्दगी मेरी,
सज़ा तुझे चाहने की
कुछ ज्यादा हो गयी..
क़फ़स शायरी – चमन का लुत्फ़ आता है
चमन का लुत्फ़ आता है मुझे सय्याद के सदक़े
क़फ़स में ला के उस ने आज शाख़-ए-आशियाँ रख दी
क़फ़स शायरी – आशियाँ जल गया गुल्सिताँ लुट
आशियाँ जल गया गुल्सिताँ लुट गया
हम क़फ़स से निकल कर किधर जाएँगे
इतने मानूस सय्याद से हो गए
अब रिहाई मिलेगी तो मर जाएँगे
क़फ़स शायरी – क़फ़स उदास है यारो सबा
क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बाहरे ख़ुदा आज ज़िक्रे यार चले
गुलों में रंग भरे बादे नौबहार चले