आज़ार शायरी – ये वो काँटा है निकलता

ये वो काँटा है निकलता नहीं चुभ कर दिल से
ख़लिश-ए-इश्क़ का आज़ार बुरा होता है

आज़ार शायरी – मै तुम पे किस तरह

मै तुम पे किस तरह कर लूँ यकीन ऐ मेरे शनास,
के पिछले हादसे के ज़ख्म और आज़ार बाक़ी है.

आज़ार शायरी – आज़ार सही इश्क़ मगर हाय

आज़ार सही इश्क़ मगर हाय रे लज्जत,
वो दर्द मिले हैं के दवा भूल गये हैं