हिना शायरी – मैं भी पलकों पे सजा

मैं भी पलकों पे सजा लूँगा लहू की बूँदें
तुम भी पा-बस्ता-ए-ज़ंजीर-ए-हिना हो जाना

हिना शायरी – चंद मासूम से पत्तों का

चंद मासूम से पत्तों का लहू है “फ़ाकिर”
जिसको महबूब के हाथों की हिना कहते हैं

हिना शायरी – कुश्ता-ए-रंग-ए-हिना हूँ मैं अजब इस

कुश्ता-ए-रंग-ए-हिना हूँ मैं अजब इस का क्या
कि मिरी ख़ाक से मेहंदी का शजर पैदा हो

हिना शायरी – शामिल है मेरा खून-ए-जिगर तेरी

शामिल है मेरा खून-ए-जिगर तेरी हिना में
ये कम हो तो अब खून-ए-वफ़ा साथ लिए जा