ता अर्ज़-ए-शौक़ में न रहे बन्दगी की लाग
इक सज्दा चाहता हूँ तेरी आस्तां से दूर
Category: सज्दा शायरी
सज्दा शायरी – किधर सज्दा करूँ काबा किधर
किधर सज्दा करूँ काबा किधर है
ज़हे-क़िस्मत वो आए मेरे घर आज
सज्दा शायरी – जबीं सज्दा करते ही करते
जबीं सज्दा करते ही करते गई
हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले
सज्दा शायरी – न नमाज़ आती है मुझ
न नमाज़ आती है मुझ को न वज़ू आता है
सज्दा कर लेता हूँ जब सामने तू आता है