मंजर शायरी – बहुत खुश हुए की अकेले

बहुत खुश हुए की अकेले है हम,
आज जब मोहब्बत करने वालों के मंजर देखे

मंजर शायरी – बरस रहे बादल आँखे रो

बरस रहे बादल आँखे रो रही
तन्हाई हर बात कह रही
जाये तो कहा जाये
हर ओर गम की हवा चल रही
बड़ा अजीब मंजर है इश्क का
मर चुका मानस मगर साँस चल रही

मंज़र शायरी – पुराने शहरों के मंज़र निकलने

पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं
ज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं

मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में
मगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं

मंजर शायरी – मंजर ही हादसे का बड़ा

मंजर ही हादसे का बड़ा अजीबो गरीब था…
वो आग से जला जो नदी के करीब था…

मंज़र शायरी – जिंदगी भर की रौनकों का

जिंदगी भर की रौनकों का सूना मंज़र है
काफिला जाता रहा पीछे बस गुब्बार मिला..