राब्ता शायरी – इन रंज-ओ-गम की महफ़िल से

इन रंज-ओ-गम की महफ़िल से नही है अब कोई गिला
जब खुद से राब्ता नही तो तन्हाई से क्यूँ हो कोई गिला