मुंतज़िर जिनके हम रहे उनको,
मिल गए और हमसफ़र शायद
Tag: dard bhari shero shayari
लिबास शायरी – आज अभी उनकी नज़र में
आज अभी उनकी नज़र में राज़ वही था,
चेहरा वही था चेहरे का लिबास वही था,
कैसे उन्हें बेवफा कह दूं
आज भी उनके देखने का अंदाज़ वही था
नशेमन शायरी – तेरे दर के बाहर भी
तेरे दर के बाहर भी दुनिया पड़ी है
कहीं जा रहेंगे ठिकाने बहुत हैं
मेरा एक नशेमन जला भी तो क्या है
चमन में अभी आशियाने बहुत हैं
हरजाई शायरी – ये इनायत भी नही कम
ये इनायत भी नही कम मेरे हरजाई की
जख्म देता है मगर दाम नही लेता है…
जो कि रूसवाई से डरता तो है बहोत वो
वह मेरा नाम सरेआम नहीं लेता है…
इंतिक़ाम शायरी – हम भटक कर जुनूँ की
हम भटक कर जुनूँ की राहों में
अक़्ल से इंतिक़ाम लेते हैं
मुफ़्लिस शायरी – तेरे फ़िराक़ में जैसे ख़याल
तेरे फ़िराक़ में जैसे ख़याल मुफ़्लिस का
गई है फ़िक्र-ए-परेशाँ कहाँ कहाँ मेरी
लम्हा शायरी – मैंने उस शख्स को कभी
मैंने उस शख्स को कभी हासिल ही नहीं किया,
फिर भी हर लम्हा लगता है कि, मैंने उसे खो दिया
गुलशन शायरी – न गुल अपना न खार
न गुल अपना न खार अपना, न जालिम बागबाँ अपना,
बनाया आह किस गुलशन में हमने आशियाँ अपना
मुख़्तसर शायरी – कैसे क़िस्से थे कि छिड़
कैसे क़िस्से थे कि छिड़ जाएँ तो उड़ जाती थी नींद
क्या ख़बर थी वो भी हर्फ़-ए-मुख़्तसर हो जाएँगे
बेचैनियाँ शायरी – कुछ दरमियाँ नहीं गर तेरे-मेरे,
कुछ दरमियाँ नहीं गर तेरे-मेरे, बेचैनियाँ क्यों हैं…
लौट आओ, कुछ रिश्ते बेरुखी से भी नहीं टूटा करते